Jarwa Women

Usha Kiran Atram

Translated by Shatali Shedmake

Have you never seen mothers-sisters-women-girls?
Have you not ever?
Then, why are you ogling  
Eyes fixed on our naked bodies
Why are you staring with lustful eyes…
They are more poisonous than poisoned thorns,
Piercing our bodies,
Why do we seem like some strange creatures of the world to you?
The tribals of Andaman Nicobar
Are they not humans?
Those who have lead life
Sitting in the lap of nature
Those who can decipher the nature
Those who know how to live and die with nature's cycles
Why do you forget
They are also humans

 

The scoffs, the comments
You expose the nakedness covered with your expensive clothes 
Why do you have such rotten mindset?
Why have you closed your minds?
They are Jarwas, Jarwas – starving and naked 
Pauperized, dim-witted, baffling Jarwa
Black-unseemly-naked  
With no food or education

 

Why don't you live in Andaman Nicobar?
Stay here for 2-3-5 year
And then tell us your thoughts about life

 

That life we live here is totally unknown
No knowledge of the outer world, no identity
Unknown, illiterate… like animals

 

That time when your eyes were searching for us
Jarwa women run with children to hide
You threw stones, sometimes a crumble of bread
Just like you feed your pets
Your cameras are always focused on our bodies, to capture us
You click pictures, write online blogs and publish articles, cover stories
And make money out of it
We are in the news TV, newspapers, internet, everywhere
You profit from our naked pictures of our mothers and sisters
As if it were a competition
You made our bodies into an industry and market.

 

When the brokers, and so-called civilised people
Take photos of Jarwa women
They are scared, nervous and
They run – run – and run
The camera runs behind them
Fixated on their bodies
She falls down unconscious in fear
And runs again after regaining consciousness
You laugh your heart out
The photographers and media never left them
And imprisoned them in their cameras

 

Jarwa women used to say
We are not afraid of sea storms or the nature
Because their eyes are not fixed on our bare bodies

 

Being a human
They could not understand us
They do not consider us as the same,
So will they consider Jarwa women
As their mothers and sisters
Is this your civilisation?

क्या कभी मां-बहने-औरतें-लडकियां

देखी नहीं तूमने ?

फिर क्यों देख रहे हो

आॅंखे गडाएं हमारे नग्न बदन पर

क्यों धसक रहीं है तूम्हारी

वासनामयी नजरे - विषैले काटों से भी विषैली

क्यों लग रही, हम तूम्हे विश्व का विचित्र प्राणी ?

अंदमान निकोबार में रहनेवाले आदिवासी,

क्या मानव मनुष्य नहीं ?

जो निसर्ग की गोद में नैसर्गिक जीवन जीते आये

निसर्ग को पढ़ने का जो ज्ञान है उन्हें

निसर्ग चक्र के साथ जीना मरना जानते हैं वो।

आप क्यों भुल गये हो

वे मनुष्य ही है.. !!

वो करते है विडंबना टिप्पनियां

उंचे कपडे पहनकर अंदरसे क्यों नंगा पन दिखाते हो ?

क्यों ऐसी सड़ी सोच पाल के बैठे हो ?

क्यों दिमाग की बत्ती बुझाके रखते हो ?

जारवा है जारवा - नंगे - भुखे

कंगाल - बुद्धु - अबुझ - जारवा

काले कलुटे - विद्रुप - नंगे...

खाना-पीना लिखना-पढ़ना नहीं

अरे अंदमान निकोबार में आप रहकर देखो

दो-चार-पांॅच साल

फिर कहना... क्या होता है जीना ?

किसको कहते है पशु..? अबुझ...?

कहते हैं, ना दुनियां का ज्ञान ना पहचान

कैसे जीते है.... अनपढ़ गवांर....जानवर जैसे

तूम्हें देखकर - जारवा औरतें

भागती थी - दुधमुहे बच्चोंको छाती से लगाके

बंदरिया जैसे दरी पहाडों में

और आप फेंकते थे उनके उपर

ब्रेड, पाव के तुकडे....

जैसे जानवरों की ओर फेंके जाते हैं

या कुत्ते, सुअर की ओर फेंकते ह

तुम्हारे कैमरे गड़े थे

उनकी देह पर

खचाक खचाक खिंची जाती थी तस्वीरें

लिखे जाते थे ब्लाॅग आॅनलाईन

छापी जाती थी कव्हर स्टोरी

टिव्ही, पेपर, इंटरनेट पर

बड़ी बड़ी खबरे देकर

कमा रहे थे करोडों रूपये

नंगे बदन की, मां बहनों की तस्वीरें

जैसी स्पर्धा लगी थी जाहिरात बाजी की

करोडों का धंदा, बाजार, व्यापार बना दिया

दलालों ने सभ्य कहनेवाले लोगों ने

जारवा औरतों की तस्वीरें

जब कैमरे मे बंद की जाती थी

तब वो चिल्लाती थी डर गई थी घबरा गई थी

वो भागती - भागती - भागती थी......

कैमरा दौडता - दौडता - दौडता था उनके शरीर पर

कब्जा करके गड़ गया था

वो डरके मारे बेहोश होकर गिरती थी

होश आने के बाद और भागती थी

आप तो पेटभर हंसते थे

तस्वीरे लेते मिडियाने भी तो छोडा नहीं उन्हें

कैद करके रखी थी

वो कहती थी

आंधी-तुफान से मेघगर्जना

समुंदर से निसर्ग से हम नहीं डरते

क्यों की उनकी आंॅखे हमारे

नंगे बदनपर कभी नहीं गडी रहती

ये मानव होकर

हमें नहीं समझ सके

वो नहीं कहते हमें उनके जैसे मनुष्य

तो कब कहेंगे - जारवा औरते भी

हमारी मांॅ-बहने हैं

क्या यहीं है आपकी सभ्यता ?

Shatali Shedmake is a writer and journalist based in Madhya Pradesh's Kachargarh. She is also the managing editor of Gondwana Darshan magazine, and has translated two poems, Jarwa Women by Usha Kiran Atram and Vidrohachya Maifleet by Bhujang Meshram.